आँख से ढलके न दुख में, है वो पानी किसलिए।
गज़ल
2122….2122…..2122…..212
आँख से ढलके न दुख में, है वो पानी किसलिए।
देश के खातिर नहीं तो, फिर जवानी किसलिए।
खुद के खातिर जीना मरना, जिंदगी क्या जिंदगी,
गैर के दुख में न जाये, जिंदगानी किसलिए।
धन इकट्ठा कर रहे हैं, चोरी मक्कारी से जो,
खाली हाथों लौट जाना, बेइमानी किसलिए।
रैलियों में भीड़ में जनता मरे मरती रहे,
हर जगह फिर मास्क दूरी सावधानी किसलिए।
रोजी रोटी काम धंधे, दीजिए हर हाथ को,
तब बढ़ेगा देश में, झूठी कहानी किसलिए।
मुफलिसों के नाम पर है होता हंगामा बहुत,
दीजिए हक है जो उनका, मेहरबानी किसलिए।
प्यार में दो दिल मिलें, तो एक से लगने लगें,
हो अगर प्रेमी तो फिर ये बदगुमानी किसलिए।
…….✍️ प्रेमी