” आँख में आँसू मगर रोना नहीं ” !!
चैन रातों का कहीं खोना नही !
दूर हमसे आप बस होना नहीं !!
ठोकरें कितनी मिली हैं थक चुके !
आज सपने फिर कहीं बोना नहीं !!
खो गये हैं इस कदर खुद आप में !
ढूंढता है दिल यहाँ कोना नहीं !!
मर मिटे हम आप पर सच मानिये !
खूब चमके आप पर सोना नहीं !!
ज़िन्दगी हर पल ठगी करने लगे !
बोझ सर पर अब कहो ढोना नहीं !!
फट गई चादर पुरानी सोच की !
आज हमको बस उसे धोना नहीं !!
पीर अब अपनी परायी सी हुई !
आँख में आँसू मगर रोना नहीं !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )