आँख अब भरना नहीं है
दिल उसके नाम अब करना नहीं है
हमें फिर उसपे तो मरना नहीं है
हमें मजबूर ना कर दें वो आँखें
हमें इन बातों से डरना नहीं है
गोगल डाल के गुजरा करो तुम
हमें ये क़लमा अब पढ़ना नहीं है
रखो इल्ज़ाम सब मेरे ही सर पे
हमें अब आप से लड़ना नहीं है
जला डाला वो ख़त ये सोच करके
हमें ये आँख अब भरना नहीं है
~विनीत सिंह शायर/Vinit Singh Shayar