आँखों से बरसा करता है, रोज हमारे सावन
आँखों से बरसा करता है, रोज हमारे सावन
मगर भीगकर भी रहता है, प्यासा प्यासा ये मन
गडमड गडमड हो जाते हैं,भाव अश्रु में धुलकर
मुस्काने लगते हैं मुख पर , दर्द हमारे खुलकर
दिखता अक्स नहीं कोई भी, धुँधला मन का दर्पन
आँखों से बरसा करता है, रोज हमारे सावन
आँसू से है प्रीत हमारी , देखो बहुत पुरानी
इनसे बड़ा नहीं है जग में ,कोई सच्चा ज्ञानी
खारे हो जाते ये पीकर, मन का सब खारापन
आँखों से बरसा करता है, रोज हमारे सावन
पग पग पर इस चंचल मन को, पड़े हमें समझाना
टेढ़ी – मेढ़ी राहों पर अब, हमको चलते जाना
आँखों में आँसू हैं फिर भी , हँसता रहता जीवन
आँखों से बरसा करता है, रोज हमारे सावन
डॉ अर्चना गुप्ता