आँखों से बरसते मोती
** ऑंखों से बरसते मोती **
**********************
आँखों से बरसते मोती हैं,
दुख पीड़ा को जो धोती है।
गैरों की गौर में जीने लगे,
अपनों की गोद में रोती है।
कोई क्या जाने दर्द ए दिल,
किस्मत किस कोने सोती है।
काले कर्मों की सजा मिली,
कालिख़ मुखड़े पर पोती है।
दिल के अरमान बिखर गए,
मद्धिम हुई जीवन ज्योति है।
सपने भी कसकर बांध लिए,
ढीली पड़ गई बंधी जोती है।
घर-आंगन छूटा है मनसीरत,
दुश्मन बन गए सब गोती हैं।
**********************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)