आँखें
कभी-कभी ये आँख भी, करती बहुत कमाल।
होता दिल में दर्द पर, बाहर करे धमाल।।
करती हैं साजिश बहुत,लगता लेगी जान।
बस जाता इन आँख में,जब कोई इंसान।।
बैठी हूँ चुपचाप पर,आँखें करती बात।
भेद जिया का खोलती,करती है उत्पात।।
झुकी उठी फिर मौन हो,आँखें होती चार।
दिल तो इसके सामने, हो जाता लाचार।।
ख्वाब सुहाने देखती,सुबह शाम दिन रात।
इन आँखों के सामने,मेरी क्या औकात।।
बिन बोले ही देखती,आँखें कितने ख्वाब।
कुछ मन में खुशियाँ भरे, कुछ मन करें खराब।।
इन आँखों से झाँकता,हर्ष-उदासी जीत।
है मन का दर्पण यही,गीत-प्रीत मनमीत।।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली