आँखें ही अब बोलती, आँखें ही अब कान……….
उसने ही सब दिया , ये तन मन ये प्राण.
उसकी खातिर मिट चलूँ, छोडूं ये पहचान.
मेरा मुझमे कुछ नहीं , सब उसकी है रीत.
मैं तो उसमे खो गया, ये है उसकी प्रीत.
वाणी खोई प्यार में, होंठ हुए बेजान.
आँखें ही अब बोलती, आँखें ही अब कान.
राधा पूछें कृष्ण से , कर लें हम तुम ब्याह.
कान्हा बोले एक हम,दो जन की ये राह.
जीवन की इस धूप में , यादों की इक छांव.
चाहे जितना दौड़ लो, हलके लगते पांव.
उसने बोला आँख से, हुआ बड़ा ही शोर.
शहरों शहर बात उठी, हो गए जैसे चोर.
मैं मैं करके मैं चला,लेकर खाली हाथ,
जिस दिन बैरी मैं मिटा, पा लूं उसका साथ.
शबरी जूठे बेर हों, या मीरा की पीर,
सबकी अँखियन एक सा , बहता नेहा नीर.
…..सुदेश कुमार मेहर