#ग़ज़ल-34
#ग़ज़ल
आँखें खुली हैं ग़ाफिल दिल तो गुमकोश है
बैठे हुए हैं महफ़िल में पर ना होश है/1
यादें किसी की ताज़ा हो आई हैं लगे
लब हैं सिले से मन ही मन में इक ज़ोश है/2
रूठो नहीं मिलके जी लो हरपल हो जवां
राहें खुली हैं जीवन प्यारा आग़ोश है/3
हँसके रहो बोलो मीठे प्यारे बोल तुम
जड़ हो वही तो होके रहता ख़ामोश है/4
‘प्रीतम’ यहाँ मौज़ों के गहरे सागर बने
लूटे वही इनको जो होता ग़मपोश है/5
-आर.एस.’प्रीतम’
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