अफ़सोस न कर – डी के निवातिया
अफ़सोस न कर
***
मेरे वतन के हिस्से ये सौगात हर बार मिली है !
कभी गूंगो की कभी बहरो की सरकार मिली है !!
किसी में हुनर सुनने का, किसी में सुनाने का
आज इसी में उलझी राजनीति लाचार मिली है !!
अफ़सोस न कर दरिंदगी पर आज के दौर में
खुद को देख तुझमे ही ह्या शर्मशार मिली है !!
जब जब भी उठे सवाल यंहा गुनाहगारो पर
सियासत बनकर उनकी पनाहगार मिली है !!
आ हम भी चलते है, कुछ दुआए बटोर लाते है
सुना है रब के दर खैरातियो की लार मिली है !!
मजहब का चोला पहनकर, ईमानदार मत बन
तेरे जैसे कितनो की रूह यहां गुनेहगार मिली है !!
बात किस किस की करेगा “धर्म” इस बाज़ार में
शैतान के हाथ खुदा की चौखट लाचार मिली है !!
!!!
डी के निवातिया