अहोई अष्टमी
छोड़ देती है माँ को संतान आज देखो दर दर भटकने के लिए,
फिर भी माँ रखती है व्रत उसी संतान का भाग्य पलटने के लिए।
कार्तिक मास की अष्टमी को माँ करती व्रत अहोई अष्टमी का,
करती प्रार्थना अहोई माता से संतान को सुखी रखने के लिए।
सुबह उठकर माँ स्नान कर ध्यान रखती माता के चरणों में,
दोपहर को थाली सजाती अहोई माता की कथा सुनने के लिए।
कथा सुन कर व्रत की माँ करती जल अपर्ण सूर्य देवता को,
फिर करके जलपान माँ करती इंतजार तारे निकलने के लिए।
तारों को अर्घ्य देकर माँ करती प्रार्थना संतान के मंगल के लिए,
करती हर साल माँ इस व्रत को जीवन में ख़ुशी बिखरने के लिए।
सुलक्षणा करती प्रार्थना अहोई माता से कोई ना संतानहीन रहे,
हे अहोई माता कोई बच्चा माँ से ना बिछड़े उम्र भर तड़पने के लिए।
©® डॉ सुलक्षणा अहलावत