अहीर छंद
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मन के ताले खोल।
मुख से कुछ तू बोल।।
करना है कुछ काम।
जग में होगा नाम।।
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दिन भर खेले खेल।
निकल रहा है तैल।।
करें नहीं आराम।
रौशन करते नाम।।
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राम लखन के संग।
रावण से थी जंग।।
लड़ते हनुमत वीर।
युद्ध हुआ गम्भीर।।
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लेकर हरि का नाम।
शुरू करो तुम काम।
सफल रहोगे आज।
तभी सफल हो काज।।
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सबका कर आभार।
सुन्दर हो व्यवहार।।
कर प्रभु का गुणगान।
मिले जगत सम्मान ।।
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✍ ✍ पं.संजीव शुक्ल “सचिन”
मुसहरवा (मंशानगर)
पश्चिमी चम्पारण
बिहार