“बचपन में जब पढ़ा करते थे ,
कभी बारिश में जो भींगी बहुत थी
तुलना करके, दु:ख क्यों पाले
चाह नहीं मुझे , बनकर मैं नेता - व्यंग्य
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
मन के दरवाजे पर दस्तक देकर चला गया।
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
शीर्षक - 'शिक्षा : गुणात्मक सुधार और पुनर्मूल्यांकन की महत्ती आवश्यकता'
तू फितरत ए शैतां से कुछ जुदा तो नहीं है
कार्तिक पूर्णिमा की शाम भगवान शिव की पावन नगरी काशी की दिव
जीवन की संगत में शामिल जब होती अभिलाषाओं की डोर
ज़माना इतना बुरा कभी नहीं था
हसरतें बहुत हैं इस उदास शाम की
Abhinay Krishna Prajapati-.-(kavyash)
🥀*गुरु चरणों की धूलि*🥀
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
■ मिथक के विरुद्ध मेरी सोच :-