अहंकार
पता नही लोग इतने मगरूर क्यों है,
अपने ही अहम में चूर क्यों है।
ना ही रिश्तों की परवाह है,
ना कद्र है रिश्तों की।
स्वार्थ पर ही टिका है,
आज कल के रिश्ते।
अपना काम निकल गया तो,
फिर चलते अपने रस्ते।
मुड़ कर भी नही देखते हाल,
क्या है अपने घर के।
अहंकार वो अग्नि है,
जिसमें जल जाते है सारे।
पता भी नही चलता कब,
राख बन जाते हैं प्यारे।
आज कल लोग अहंकार में,
इतने डूब रहे है।
अपने रिश्ते नाते को भी ,
भूल रहे है।
पता नही लोग इतने मगरूर क्यों है,
अपने ही अहम में चूर क्यों है।
नाम-ममता रानी,राधानगर (बाँका) बिहार