अहंकार की तृप्ति
मनुष्य ने वे ही काम करने शुरू किये,
जो निसर्ग में एक चक्र होता है.
एक कुत्ते को पालतू बनाया.
फिर बिल्ली पाल ली.
दोनों को एक बर्तन में खाना परोसा.
और सिद्ध करने की कोशिश की.
और निसर्ग को झुठलाने में अपने
अहंकार को तृप्त किया.
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घर से बाहर निकले तो देखा,
कुत्ता बिल्ली को देखकर घुस रहा था.
बाहर तो कुछ नहीं बदला.
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योगी जी अछूत के घर में खाने का आयोजन भी इससे ज्यादा नहीं हो सका. जिनके घरों का आप पानी नहीं पीता, हुक्का सांझा नहीं करते, विवाह शादी तो दूर की बात, पास आसन पर.
नहीं बिठाते,
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जंगल में बकरी बांधकर,
शिकार होते आये है.
इससे ज्यादा कुछ नहीं.
एक चिडिय़ा घर में बकरी और शेर को रखने से कुछ नहीं होने वाला.
डॉक्टर महेन्द्र सिंह हंस