अस्पताल का मुआयना
आज बड़े निदेशक स्तर के डॉक्टर साहब द्वारा अस्पताल का पूर्व घोषित मुआयना होने जा रहा था । पिछले 15 दिन से चली आ रही तैयारियों का अंत हो चुका था। सभी कर्मचारी स्वछक , वार्ड बॉय , नर्सेज , दफ्तर के कर्मचारी , डॉक्टर एवं अन्य अधिकारीगण सुबह-सुबह नहा धोकर समय से अपनी यूनिफॉर्म में चाक-चौबंद होकर खड़े थे ।निदेशक साहब पधार चुके थे और सभी लोग उनसे कुछ दूरी बनाते हुए नतमस्तक भाव से चौकन्ना होकर उन्हें घेर कर खड़े थे । माहौल में इतना सख्त अनुशासन व्याप्त था कि कोई परिंदा अपना पर तो क्या अस्पताल में रहने वाले कुत्ते तक भी वहां अपनी दुम नहीं फटकार सकते थे । सब आधी सांस रोके मुआयना शुरू होने के इंतजार में खड़े अपनी निगाहें इकटक निदेशक साहब के चेहरे पर जमाए हुए थे । वहां उपस्थित उन सब की व्यग्रता भरी बेचैनी से बेखबर निदेशक साहब शांत मन और निर्विकार भाव से अनमने हो कर चारों ओर अपनी दृष्टि बार-बार घुमा रहे थे । किसी के इंतजार में उनकी निगाहें उस भीड़ में किसी को ढूंढ रही थीं ।
तभी उनके इंतजार की घड़ियां को समाप्त करते हुए अस्पताल की मेट्रन जी का उन सबके बीच आगमन हुआ । मैट्रिक जी अपनी कान में सुनने वाली मशीन को ठीक करते हुए तथा अपना चश्मा नाक पर चढ़ाते हुए गठिया की वजह से सुस्त बत्तख की चाल में चलती हुई आयीं । कई लोगों के मुंह से निकला मेट्रन जी आ गयीं – मेट्रन जी आ गयीं । बड़े निदेशक साहब ने मुस्कुराकर उनका अभिवादन स्वीकार किया और अस्पताल के निरीक्षण के लिए सहमति का इशारा कर अस्पताल के अंदर के हिस्सों में मेट्रन जी को साथ ले कर अग्रसर हो गए उनके साथ साथ अन्य अधिकारियों का जत्था भी उनके साथ निरीक्षण पर घूमने लगा । मेट्रन जी अपने कान में सुनने की मशीन लगाए रहने के बावजूद भी ठीक से सुन नहीं पाती थीं अतः वह किसी बातचीत में सुनने के बजाए बोलने वाले सिरे पर ही रहती थीं । मेट्रन जी की ना सुन पाने की दिक्कत पर निदेशक साहब ने जब उनसे आपत्ति के भाव प्रकट किए और उनसे इस बारे में पूछा तो उन्हें उलाहना देते हुए वो बोलीं कि आप ही के विभाग के एक डॉक्टर के द्वारा स्ट्रेप्टोमाइसिन का गलत इंजेक्शन लगा देने की वजह से उनकी सुनने की क्षमता कमजोर पड़ गई , और अपने इस बहरे पन के लिए वो इस स्वास्थ्य विभाग को ही पूर्ण रूप से जिम्मेदार मानती हैं । इस बीच कई स्थानों पर रुक – रुक कर निदेशक महोदय जब मेट्रन जी से कुछ कहते थे या कोई निर्देश देते थे तब मेट्रन जी के ना सुन पाने के कारण निदेशक महोदय कुछ भी उनसे कहते थे मेट्रन जी उसका एक रटा रटाया सा वाक्य बोलकर उत्तर देती थीं
‘ जी ठीक है ठीक है यहां भी सफाई करवा दूंगी । ‘
कुछ देर बाद यह स्थिति आ गई कि निदेशक महोदय उनसे कान के पास अपना मुंह ले जाकर कभी ज़ोर ज़ोर से बोल कर तो कभी हाथों के इशारे से उनसे कुछ कहते या उन्हें समझाने की कोशिश करते थे जिसके उत्तर में मेट्रन जी एक गंभीर मुद्रा वाले मुखोटे को धारण कर उनकी बात को ना सुनते समझते हुए भी उसे भलीभांति सुन एवम समझ लेने के भाव अपने चेहरे पर प्रगट करते हुए उनकी हां में हां मिलाते हुए फिर वही रटा रटाया वाक्य दोहरा देती थीं
‘ जी सर जी सर यहां भी सफाई करवा दूंगी ।’
कुछ देर बाद मेट्रन जी और निदेशक महोदय के बीच होने वाला वार्तालाप वाक्यों के आदान-प्रदान से हटकर केवल एक दूसरे के प्रति प्रदान प्रदान तक ही सीमित रह गया था ।
निदेशक महोदय अब कुछ भी कहते जा रहे थे और मेट्रन जी
ठीक है ठीक है जी सर जी यहां भी सफाई करवा दूंगी का आलाप दोहराती रहीं ।
वह एक पुराना अस्पताल अंग्रेजों के शासन काल का बना हुआ था और लगता था कि अब अगर उसकी दीवारों या फर्श को सफाई के लिए और खुरचा गया तो शायद उसके भग्नावशेष ही ना बचें । किसी प्रकार निदेशक महोदय ने अस्पताल का भ्रमण पूरा किया और दफ्तर में आकर प्रधान कुर्सी पर बैठ गए। उनके आसपास अन्य अधिकारी एवं चिकित्सक गण और मेट्रन जी भी बैठ गयीं । मेज पर समोसे , रसगुल्ले , बर्फी , केले ,बिस्कुट आदि के साथ चाय नाश्ते का प्रबंध सजा हुआ था । निदेशक साहब प्रधान कुर्सी पर बैठे हुए उस कक्ष के बाहर खड़ी कर्मचारियों , फार्मेसिस्ट , नर्सेज इत्यादि की भीड़ को निहार रहे थे । बाहर देखते हुए वह अपने मन में उठती पुरानी यादों में खो गए उन्हें याद आया कि किस प्रकार जब वे इंटर्न थे एक लाल फीते वाली छोटी के साथ राउंड ले लिया करते थे और फिर जब वे जूनियर से सीनियर रेजिडेंट बने तो दो लाल फीते वाली से तीन लाल फीते वाली छोटी के साथ राउंड लेने लगे । इसके पश्चात जब वे परामर्शदाता (कंसलटेंट ) बने तो वार्ड में नर्सेज के साथ राउंड पर जाया करते थे और वरिष्ठ परामर्शदाता बनने पर किस प्रकार सिस्टर के साथ घूम घूम कर अस्पताल का निरीक्षण किया करते थे । इस प्रकार पद में तरक्की के साथ-साथ उनको अस्पतालों में राउंड दिलाने वाली सहयोगिनी का स्तर एवम उम्र भी बढ़ती गई और अब यह आलम था कि जब वह किसी अस्पताल में निरीक्षण पर जाते हैं तो राउंड के लिए सबसे पहले मेट्रन जी को उनके आगे कर दिया जाता है ।और प्रोटोकॉल के हिसाब से मेट्रन जी अन्य अधिकारियों के दल का हिस्सा बन राउंड पर उनके साथ रहती हैं ।
फिर उनकी निगाह मेज पर लगे चाय नाश्ते पर पड़ी तो वे सोचने लगे कि किस प्रकार जब शुरू – शुरू में लाल फीते वालियों के साथ कभी-कभी अपनी एप्रेन की जेब में पड़े भुने चने , मटर या मुुमफली को आपस में बांट कर मन बहला लिया करते थे । आज इस टेबल पर सजे नाश्ते को देखते हुए उन्हें अपनी मंद होती जठराग्नि का ध्यान आया फिर अपने दिमाग में घुमड़ते इन विचारों को दबाते हुए उन्होंने मुस्कुराते हुए बर्फी की प्लेट मेट्रन जी की ओर बढ़ाई और मेट्रन जी ने भी उनको सादर नमन करते हुए इन्कार की मुद्रा में हाथ जोड़ लिए और बोलीं मैं डायबिटिक हूं ।
सुना है बड़े निदेशक साहब ने चलते समय अपनी अस्पताल की निरीक्षण रिपोर्ट में इस अस्पताल की मेट्रन जी को कान में सुनने वाली नई मशीन दिलाने की संस्तुति की है ।