अस्तित्व
” अस्तित्व ”
कौन समझता है नारी को ?
बस आदर्श बना डाला है नारी को।
अपना जीवन औरों पर न्यौछावर
करती है नारी ।
औरों की खुशियों में अपनी खुशी
ढूंढती है नारी ।।
फिर इसी मायाजाल में अपना अस्तित्व
तलाशती है नारी ।
बस इसीलिए तो अबला कहलाती है
नारी ।।
पर ध्यान रहे , अबला नहीं होती
है नारी |
गर अस्तित्व पर सवाल उठता है ,शक्ति
बन जाती है नारी ||
@पूनम झा | कोटा , राजस्थान
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