अस्तित्व
क्या मेरी मौत होनी चाहिए ?
प्रश्न बनकर कौंधता आज
मैं क्यों मरू, राम से रावण तक
सिर्फ मेरे लिए रेखा , मर्यादा , धोखा
कैसे जीये, तुम्हीं बता दें जीवन
परिचय अस्तित्व की
दुनिया की आधी आबादी ।
आलम्बन के लिए,
स्वाबलंबी बनने में खोजी आत्मसंतुष्टी।
यहाँ पर भी दंभ भरने के लगी होड़ हैं ।
बेहोश,होश सब तरह से उन्मत्त होकर,
अपहरण कर्ता ,बलात्कारी बनकर,
अस्मत लूटते हो या मौत हमें देते हो।
फिर दोष हमें देते हो,
ठीक है जवानी का जवाब ,
क्या 4 साल क्या 40,
ना जाने इसके बीच कितने को तोहमत लगा कर,
स्थापित करते हो वासना की कामना।
मूल्यांकन के सर्वश्रेष्ठ, बहुत प्रचलन था, है अभी
महत्त्व होने के कारण,
पिताअथवा अभिभावक को कन्या मूल्य चुकाना पड़ता।
पर ये क्या
दुनियाँ से अलविदा
बिना कारण हस्तक्षेप करते हो ।दोष मेरे माथे मढ़ते हो ।
खास अंदाज में रहना, क्या होता है,
सिर्फ मेरे लिए
सभी नीति, समाज ,शासन और कुशासन
हमें ही दंड देते हैं।_ डॉ० सीमा कुमारी , बिहार ( भागलपुर)
स्वरचित कविता दिनांक _ 1-1-09जिसे आज प्रकाशित कर रही हूं।