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14 Apr 2020 · 1 min read

अस्तित्व भारत का

हम तपे-खपे जल भट्ठी में,
ओ गला सकें औकात नहीं |
उगता सूरज रोक सकें वे,
उनके बस की बात नहीं ||
समय चक्र है,घना अँधेरा,
पल है उनका कुछ खास नहीं |
पर कायम रख लेंगें इसको ,
ऐसी उनकी अब औकात नहीं ||
आयेगा झंझर, टूटेगा ये मंजर,
छतरी उठते ही खुला गगन होगा |
खुद को परिचित कर पायेंगें ,
होगी उनमें इतनी बात नहीं |
हम तपे-खपे जल भट्ठी में,
ओ गला सकें औकात नहीं ||

पं. कृष्ण कुमा शर्मा “सुमित”

Language: Hindi
2 Likes · 353 Views
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