असीफा !
किस किसपे रोऊं ?
अब आँसू भी नहीं आते ..
आती है तो बस हँसी ,
हर बात पे ;
असीफा !
जो कुचली गई , झुलसी ,मसली गई ..
और मरने के बाद भी ..
बाप दादाओं की कब्रिस्तान तक
नसीब न हुई ..
दूर है घर से , गाँव से ,
अरे वो तो दुनियां से भी परे है
फिर भी नोच रहे हो रूह उसकी ,,
बार बार …
ज़ख्म जो रिसके , सूख चुके हैं ..
प्यास तुम्हें क्या उनकी है ??
लहू में डूबे , होंट तुम्हारे ..
रूह तुम्हारी वहशी है |