असासा
तेरा अब भी मेरे पास कीमती असासा है
के तूँ अब भी मुझमें बच गया जरा सा है
चाहा तुझको मुकम्मल निकाल फेंके
तूँ मेरे लिए महज एक….हादसा है
आखिर तूँ चला क्यूँ नहीं जाता
न तुझे मुझसे न मुझे तुझसे कोई राब्ता है
मुझे कुरेद कर तुझे मिला क्या है?
दिल के जर्रे -जर्रे में क्यों इतना तमाशा है
खुद ही मिट रहा हूँ तुझे मिटाने में
बस यही थोड़ी सी……..निराशा है
मेरे पास होने का अब नाटक न कर
मुझे इल्म है के तूँ दूर बेतहासा है
-सिद्धार्थ गोरखपुरी