” असहिष्णुता का रोग “
डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
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असहनीय पीड़ा
हो रही है ,
दर्द से कराह
रहे हैं ,
कोई आके ,
हमें देखे ,
हमारे नब्जों
को परखे ,
आलाओं से ,
ह्रदय के गतिओं ,
को समझे ,
हर गत्र-गत्र में ,
न जाने कौन ,
सा रोग ,
फैल गया है ?
कोई कहते हैं –
“असहिष्णुता”
का “वायरस ”
सर चढ़ कर ,
बोल रहा है !
कोई कहता है ,
“प्रतिशोध” का
जहर अंग -अंग
में फैल गया है !!
धर्म की
झिल्लियाँ
आखों में
छा गयी है ,
दवा सटीक
इसकी मिलती
नहीं है !!
“देशप्रेम “रोग
का इलाज
कोई जान
नहीं पता है !
सक्षम चिकित्सक
भी इसे भाँफ
नहीं पाता है !!
जब हमारी ,
मानसिकता ,
सबल होगी ,
और हम जब ,
स्वस्थ होंगे ,
प्यार का ,
एहसास होगा ,
हम निरंतर ,
बढते रहेंगे !!
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डॉ लक्ष्मण झा”परिमल ”
दुमका