असली सफलता
मनखे जिनगी म सफल बने बर जम्मो उदिम करथे। ओहा पढ़थे, लिखथे अउ बड़ मिहनत करथे। काम-धंधा रहे म ओला आगू बढ़ाथे। एकरे सेती एक दिन पद-पॉवर पा जाथे। अब्बड़ पइसा कमा लेथे। फेर सुख-सुबिधा के साधन जोर लेथे। तभो ले ओला लगथे के मोर तिरन कुछु नइये। फेर ओकर हिरदे कचोटथे के कुछ तो हे जेन ला पाना बाकी हे।
तब ओ मसूस करथे के सुबिधा ह जिनगी के चकाचउंध आय। भीतर म तो कोनो खुसी नइये। सिरतो म जेन ह अंदर ले खुस हे, जेकर मन म सांति अउ सकून हे, ओही मनखे ह असली सफल हे। मनखे ल समाजिक, रचनात्मक अउ सहयोगी घलो होना चाही।
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
भारत भूषण सम्मान प्राप्त
हरफनमौला साहित्य लेखक।