*** असमंजस ***
बीज रूप में आया मैं था
कुछ विकसित हो दुनियां
देखी ।।
आँखे खोली अनजाने में
बचपन बीता हंसने रोने में ।।
आया लड़कपन का दौर दूसरा
असमंजस में डाला था मुझको
निर्णय नहीं ले पाता मैं था
क्या करना क्या नही करना ।।
आया दौर जवानी का अब
कुछ करता मैं हूँ कुछ
करवाते वो है ।।
होना वही है जो विधि को मान्य
हो मानव मन मैं चाहे जो काम्य।।
?मधुप बैरागी