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29 Nov 2021 · 1 min read

असमंजस

डा ० अरुण कुमार शास्त्री – एक अबोध बालक – अरुण अतृप्त

असमंजस
मुझको तो मालूम नहीं के जीवन कैसे जीना है
शिक्षा ज्ञान परीक्षा में से क्या क्या मुझको चुनना है //

देखा देखी आस पास से जो जो मैने समझा है
रूप स्वरूप वही सब तो मैंने इस जीवन में ढाला है //

फिर भी दोषी बनकर मैने जीवन यहां गुजारा है
तू तो बच के ही रहना भैया, सब संत यही समझाते हैं //

दुनिया दारी दलदल जैसी आख़िर सब फँस जाते हैं
निकल के इसमे से अब पाना मुश्किल कर्म अकारथ है //

तू तो बच के ही रहना भैया सब संत यहीं समझाते हैं //

जिसको देखो मूह लटकाए इस दुनिया में रहा विचर
असमंजस का बोझ उठाये भटक रहा है इधर उधर //

वेदों में एक श्लोक पढ़ा था अर्थ बड़ा ही निराला था
जिसने भी उसको अपनाया सत्य सार्थक पाया था //

जीवन के जंजालों से फिर मुक्ति का मार्ग प्रशस्त हुआ
धर्म अर्थ अरु काम विजित कर मोक्ष पदेन को प्राप्त हुआ //

मुझको तो मालूम नहीं के जीवन कैसे जीना है
शिक्षा ज्ञान परीक्षा में से क्या क्या मुझको चुनना है //

देखा देखी आस पास से जो जो मैने समझा है
रूप स्वरूप वही सब तो मैंने इस जीवन में ढाला है //

Language: Hindi
Tag: गीत
2 Likes · 2 Comments · 462 Views
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