असमंजस
डा ० अरुण कुमार शास्त्री – एक अबोध बालक – अरुण अतृप्त
असमंजस
मुझको तो मालूम नहीं के जीवन कैसे जीना है
शिक्षा ज्ञान परीक्षा में से क्या क्या मुझको चुनना है //
देखा देखी आस पास से जो जो मैने समझा है
रूप स्वरूप वही सब तो मैंने इस जीवन में ढाला है //
फिर भी दोषी बनकर मैने जीवन यहां गुजारा है
तू तो बच के ही रहना भैया, सब संत यही समझाते हैं //
दुनिया दारी दलदल जैसी आख़िर सब फँस जाते हैं
निकल के इसमे से अब पाना मुश्किल कर्म अकारथ है //
तू तो बच के ही रहना भैया सब संत यहीं समझाते हैं //
जिसको देखो मूह लटकाए इस दुनिया में रहा विचर
असमंजस का बोझ उठाये भटक रहा है इधर उधर //
वेदों में एक श्लोक पढ़ा था अर्थ बड़ा ही निराला था
जिसने भी उसको अपनाया सत्य सार्थक पाया था //
जीवन के जंजालों से फिर मुक्ति का मार्ग प्रशस्त हुआ
धर्म अर्थ अरु काम विजित कर मोक्ष पदेन को प्राप्त हुआ //
मुझको तो मालूम नहीं के जीवन कैसे जीना है
शिक्षा ज्ञान परीक्षा में से क्या क्या मुझको चुनना है //
देखा देखी आस पास से जो जो मैने समझा है
रूप स्वरूप वही सब तो मैंने इस जीवन में ढाला है //