असत्य पर सत्य की जीत
हर तरफ देखिए
असत्य पर सत्य की जीत का जश्न है
हर कोई राम की भक्ति में मग्न है
ये क्या हर साल रावण को मारा जाता है
फिर कैसे ये हर बार जिंदा हो जाता है
हर साल राम की
विजय पताका लहराते हैं
और रावण का दहन कर जाते हैं
पर फिर से नए रावण जन्म ले आते हैं
अब राम कोई नहीं बनना चाहता है
क्योंकि हर कोई यह जानता है
राम तो हमेशा ही बस कष्ट उठाता है
अब सभी को रावण का किरदार भाता है
इसलिए हर कोई सीता चुराना चाहता है
पर अब रावण सा धैर्य भी कहाँ है
हर कोई इच्छा के विरूद्ध जाता है
और पल भर में हवश मिटाना चाहता है
अब राम-राज तो नजर आता है
परंतु जिधर देखो हर तरफ
राम नहीं रावण ही नजर आता है
स्वरचित
( विनोद चौहान )