अष्टांग मार्ग गीत
मन विचलित है तन विचलित है,
दुख का लगा अंबार है,
दुख से मुक्ति का मार्ग सुझाया,
तथागत बुद्ध महान हैं,
हे !भगवान तथागत बुद्ध…।
चार आर्य सत्य बतलाकर,
अष्टांग मार्ग का ध्यान कराया,
प्रज्ञा शील समाधि लेकर ,
दुख मुक्ति का अभ्यास कर,
हे !भगवान तथागत बुद्ध ….।
सम्यक् ‘दृष्टि’ देखो अब तुम,
सम्यक् लेना है ‘संकल्प’,
सम्यक् ‘वाणी’ कह दो अब,
सम्यक् ‘कर्मान्त’ करोगे तुम,
हे! भगवान तथागत बुद्ध….।
सम्यक् ‘आजीविका’ जीना है तुमको,
सम्यक् ‘व्यायाम’ पहचान कर,
सम्यक् ‘स्मृति’ रखो अब तुम,
सम्यक् ‘समाधि’ प्राप्त कर,
हे! भगवान तथागत बुद्ध..।
तृष्णा है दुखो का मूल,
अष्टांग मार्ग से प्रहार कर ,
दुख निरोध गामिनी प्रतिपदा,
मूल सत्य का ज्ञान लो,
हे!भगवान तथागत बुद्ध…।
रचनाकार-
***बुद्ध प्रकाश ;
***मौदहा हमीरपुर ।