अश्क़ गीत बन कह रहे हालात
लम्बे समय बाद अश्क गीत बन कह रहें हालात
ताउम्र समझा क्यों नहीं तू मेरे दिल के जज़्बात
तरसा है दिल किसी के प्यार को पाने की खातिर
बन्दिशों का दायरा चारो तरफ नहीं कोई मेरे साथ
करता हूँ बन्द आँखें चले आते हो मुझसे मिलने को
क्या शर्ते इश्क में सिर्फ सपनों में ही होती मुलाकात
सब कुछ है मेरे पास बस एक प्यार की कमी साथी
किसी की नजर लग गई जो होती नहीं तुमसे बात
ख़ुशबू बनकर चाहा की तू सदा मेरे साथ रह सकें
ख़ुदा का बन्दा हूँ बन्दगी में देजा इश्क की सौगात
इल्तिज़ा अशोक कहता मोहब्बत जिंदगी है यारां
खामोश आँखों में पढ़ सपनें में आना आज की रात
अशोक सपड़ा की कलम से दिल्ली से