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24 Jan 2024 · 1 min read

अश्रु

अश्रु ढ़रक आते हैं
अनायास ही
नेत्रों से
अंजन को
क्षालन के लिए
या
उर के
कुंज में छिपी
दारूण वेदना को
मुख़्तसर
करने के लिए।
विनोद की
अतिशयता भी
अक्षुनीर की
निमित्त बनती है
हिमगिरि के
आगार की तरह
और
बुहार कर
ले जाती है
अंतस की
छिछली
पीड़ा को
अपने साथ
सुदूर
सघन कानन में।

Language: Hindi
135 Views
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