अश्रुपात्र A glass of tears भाग 9
भाग – 9
तो क्या मम्मी को सब पहले से ही पता था…?
क्या नानी गुम हुई ही नहीं थीं…?
क्या शालिनी मैम को मम्मी ने सब कुछ बता दिया…?
क्षण भर के अंदर ही पीहू के मन मे न जाने कितने सवाल आसमान में छाए बादलों की तरह इधर उधर कौंधने लगे।
उसे उहापोह स्थिति में देख कर मम्मी उसके पास आ कर बैठ गईं और बोली
‘दरअसल पीहू… नानी के प्रति तुम्हारा बदलता हुआ व्यवहार मैं पिछले कई महीनों से नोटिस कर रही थी। एक ग्यारहवीं क्लास की मनोविज्ञान विषय की स्टूडेंट को ऐसा व्यवहार बिल्कुल भी शोभा नहीं देता पर…। तुम्हे कई बार समझाना चाहा पर तुम्हे नानी के हर काम मे बात में कोई न कोई समस्या दिखाई देती ही थी।’
‘उस दिन दोपहर को जब दरवाज़ा खुला रह गया था… तब सुम्मी आंटी ने अपने घर से तुम्हे और विभु को नानी के साथ बैठे देखा था। मतलब साफ था नानी घर से निकली और तुम्हे भनक तक न हुई ऐसा तो हो ही नहीं सकता था।’
‘फिर जब मैं शाम को आसपड़ोस में पूछताछ कर रही थी, पुलिस स्टेशन भी गयी कम्पलेंट करने तुमने तब भी कुछ नहीं कहा। इतने में ही पंडित जी का फोन भी आ गया कि माँ मन्दिर में हैं तो मुझे तसल्ली हो गई कि माँ ज्यादा दूर नहीं गयीं हैं… अब मिल ही जाएँगी।ये बात और है कि वो वहाँ से आगे…’ माँ इतना कह कर चुप हो गई
‘पर पीहू तुम्हारी मम्मी के लिए सबसे बड़ी चिंता का विषय तुहारा तुम्हारी नानी के प्रति नकारात्मक रवैया था। तुम्हारी उन्हें प्रति संवेदनहीनता उन्हें परेशान किये जा रही थी। उन्हें लगने लगा था कि उनकी परवरिश में कहीं न कहीं कोई कमी रह गयी है। इसी लिए उन्होंने उसी रात मुझसे कुछ देर तक बात की…’ शालिनी मैम बोली
‘और अगले दिन मैने मेंटल डिसऑर्डर्स की क्लास ले कर अश्रुपात्र की भूमिका बांधी। जिसमे तुमने आँखें बंद करके अपनी ही नानी की छवि देखी… तुम्हे अपनी गलती का अहसास तो तभी हो चुका था। पर मैंने ही सुगन्धा जी से कहा कि नानी की ज़िंदगी से जुड़ी सारी बातें तुम्हे धीरे धीरे बताती रहें। जिससे तुम्हे उनके जीवन के उतार चढ़ाव, सभी परेशानियों, उनकी निर्णय क्षमता, उनकी संघर्षों आदि के बारे में पता चले। सबका जीवन इतना सहज सरल नहीं होता बच्चों जितना तुम्हे मिला है।
‘दुनिया का हर वो इंसान जो तुम्हे मुस्कुराता दिख रहा है, हँसता गाता दिख रहा है या बहुत सफल दिख रहा है… उस हर इंसान की हँसी या सफलता के पीछे सैंकड़ों गमों का आँसुओ के रूप भरा हुआ वो अश्रुपात्र है… जिसे किसी अपने ने सहारा दे कर थाम लिया। या किसी अपने के दो मीठे बोलों ने उस अश्रुपात्र के खारेपन को खत्म कर दिया।’
शालिनी मैम हमेशा ही मीठा बोलती थीं… प्रोत्साहित करतीं थीं पर आज तो … बात ही अलग थी। पश्यताप करने को आतुर पीहू सुने जा रही थी… उसने कस के विभु का हाथ पकड़ा हुआ था।
विभु बहुत छोटा था उस से लगभग सात साल छोटा। जो कुछ भी हुआ उसमें उसकी कोई गलती नहीं बताई जा सकती थी क्योंकि वो तो हमेशा ही पिहु का चमचा बना घूमता रहता था। उसे वही दिखाई देता था जो पीहू उसे दिखाती थी। पर अब वही विभु को भी समझाएगी की अपने बड़ों से किस तरह प्यार से डील करना है जिससे वो अपनी मानसिक समस्याओं से बाहर आ सकें।
‘पर उस दिन नानी ने विभु का मुँह जो दबाया….’
‘हाँ बेटा उस दिन थोड़ा मैं भी घबरा गई थी… पर उन्होंने विभु का मुँह दबाया नहीं था बल्कि वो विभु को लड्डू खिलाने की कोशिश कर रहीं थीं। क्योंकि मेरे बार बार कहने पर भी विभु सुन नहीं रह था… और नानी मेरी मदद करना चाह रही थीं। उनका तरीका सही नहीं था पर मंशा भी गलत नहीं थी। जब हम ये जानते है कि ऐसा हो सकता है तो … अब थोड़ा और ध्यान रखेंगे… बस…’ सुगन्धा मुस्कुराई
‘शालिनी जी अब ज़रा उस बारे में भी बात कर लें जिसके लिए आपको यहाँ आने का कष्ट दिया …’
‘जी ज़रूर…’
‘पर इस मे समय लगेगा… मैंने माँ जी को देखा… और उनकी हालत भी। समय पर ध्यान न देने के कारण उनका मानसिक स्वास्थ्य काफी बिगड़ चुका है। इसलिये अब उन्हें ठीक होने में समय भी ज्यादा लगेगा और मेहनत भी।’
‘आप जैसा कहेंगी हम वैसा ही करेंगे… अब तो पीहू और विभु भी हमारे साथ हैं … क्यों सही है ना…?’ नवीन ने दोनों की तरफ देखा
दोनों बच्चों ने गर्दन हिलाते हुए सहर्ष स्वीकृति दी।
‘मैं आपको अपनी साइकेटट्रिस्ट फ़्रेंड का पता देती हूँ… आप उनसे जल्द से जल्द परामर्श कर लीजिएगा … और ट्रीटमेंट के सेशन्स भी शुरू कर दीजियेगा…।’
‘और पीहू तुम्हे विभु के साथ मिल कर नानी का बहुत ध्यान रखना है और तरह तरह के खेल भी खेलने हैं उनके साथ…’
‘जी मैम… ‘
‘अच्छा सुगन्धा जी अब आज्ञा दीजिए मुझे… कल स्कूल भी जाना है।’ शालिनी मैम ने मुस्कुराते हुए हाथ जोड़े
‘बाय पीहू बाय विभु कल मिलते हैं स्कूल में…’
‘ बाय मैम… ‘ दोनों मैम को बाहर तक छोड़ने आए