अश्रुपात्र A glass of years भाग 8
‘जी आपको हुई तकलीफ के लिए हम माफी चाहते हैं… और आपने माँ का इतना ध्यान रखा उसके लिए धन्यवाद…’
अरे दीदी … क्या बात करतीं है आप। हमारी भी तो माँ जैसी हैं। अरे अंजू मंजू सब बच्चे आओ… माउशी घर जा रही हैं अपने… अब आशीर्वाद लो … पैर छुओ जल्दी जल्दी….’
सभी बच्चों और बड़ों ने नानी के पैर छुए … एक औरत जिसका नाम अलका था उन्होंने प्यार से नानी को एक शाल उड़ाया। अंजू ने नानी को कुछ फूल भी दिए। नानी सभी बच्चों से बार बार प्यार से गले मिल रहीं थीं… ऐसा लग रहा था उनका अपने घर वापिस जाने जा मन नहीं था। तभी पीहू और विभु ने प्यार से उनका हाथ थामा तो वो दोनों की ओर देखते हुए कार की ओर बढ़ने लगीं।
कार वापिस जंगल के कच्चे पक्के रास्ते से होते हुए हाईवे पर जा पहुँची और फर्राटे भरने लगी।
‘नानीईईईई वो देखो कितने सारे फूलों वाले पेड़ एक साथ… सुंदर लग रहे हैं ना…?’
नानी ने हाँ में सिर हिलाया
‘नानी आपको हमारी याद नहीं आई… हमे तो आपकी बहुत याद आई … अब कभी ऐसे नहीं जाना.. ‘ पीहू ने नानी की गोद मे सिर रख लिया… नानी प्यार से उसका सिर सहलाने लगीं।
कोई दो घण्टे बाद वो लोग शहर के पास वाले मन्दिर के पास से निकले।
‘अरे अरे कार रोको नवीन… यही वो मन्दिर है जहाँ से माँ उन बस्ती वालों के साथ गयीं थीं…।’
‘पर मम्मी यहाँ क्यों… कुछ काम है क्या…?’
‘हाँ पीहू आओ…’
सब मन्दिर की सीढ़ियां चढ़ कर पुजारी जी के पास पहुँचे ही थे की पुजारी जी तेजी से उन्ही की ओर आये…
‘अरे सुगन्धा बहन… राधे राधे …’
‘राधे राधे पंडित जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद…’
‘पंडित जी को धन्यवाद … क्यों…?’ पीहू मन ही मन बुदबुदाई
‘अरे बहन धन्यवाद कैसा… ये तो फ़र्ज़ था मेरा …दो चार बार देखा था माता जी को आपके साथ। तभी उस दिन देख कर इनका चेहरा जाना पहचाना से लगा… और मैंने आपको फोन कर दिया।’
‘फोन…?’ न चाहते हुए भी पीहू के मुँह से निकल गया
हाँ पीहू … उस दिन दरवाज़ा खुला रह जाने पर माँ बाहर निकली तो सामने वाली सड़क पर मन्दिर की ओर एक कलश यात्रा निकल रही थी … ये मुझे सुम्मी आंटी ने बताया था। हो सकता है माँ उन्ही के साथ मन्दिर आ गईं हों। पंडित जी ने उन्हें थकी हुई अवस्था मे पेड़ के नीचे सोते हुए देखा… तो मुझे कॉल किया। पर जब तक मैं यहाँ पहुँचती… माँ उन बस्ती वालों के साथ निकल चुकी थीं।’
‘ओह….’ तभी आप शाम को थोड़ी सी नार्मल लग रहीं थीं
‘क्योंकि आपको नानी की खबर लग गयी थी…’
मम्मी ने हाँ में सिर हिलाया।
पीहू ने नानी का हाथ थाम कर उन्हें मन्दिर की परिक्रमा कराई… प्रसाद खिलाया… ओर फिर सब वापिस कार में आकर बैठ गए।
आज चार दिन के बाद घर मे सब एकसाथ इक्कठा हुए थे। पर ये दिन पहले के दिनों से अलग था। विभु और पीहू पहले से सोचे समझे प्लान के अनुसार ही नानी से बातें कर रहे थे… उनके साथ खेल रहे थे। दोनों ने इन तीन चार दिनों में नानी की कमी को शिद्दत से महसूस किया था… और अपने किये पर पछतावा भी बहुत था दोनों को ही।
सुगन्धा ने देखा बाहर अंधियारा घिरने को था … बादल घिर आए थे आसमान में… हवा भी कुछ तेज़ तेज़ चल रही थी पर फिर भी वो बार बार बाहर जा कर देख रही थी… जैसे उसे किसी का इंतज़ार हो।
‘मम्मी … आप किसी का इंतज़ार कर रही हो क्या… कोई आने वाला है…’
‘हाँ बेटा…’
‘कौन….?’
पीहू समझ नहीं पा रही थी अब कौन सा शॉक मिलने वाला है उसे। आज शाम से ही मम्मी उसे शॉक पे शॉक दिए जा रहीं थीं।
‘कुछ देर इंतज़ार करो… अभी पता चल जाएगा…’
‘क्या हुआ सुगन्धा… आईं नहीं तुम्हारी मेहमान अभी तक?’
‘मौसम कुछ खराब है नवीन… शायद इसीलिए देर हो गयी होगी…’
‘अरे हमें भी कुछ बता दो … मम्मी …. पापा… कौन मेहमान आने वाला है…?’
अब तो पीहू और विभु भी अधीर होने लगे थे…. भूख भी लगी थी… और खाना शायद मेहमान के साथ ही खाना था।
तभी डोरबेल बजी
‘पीहू ज़रा दरवाज़ा खो दो न…’
पीहू अनमने से मन से दरवाज़े तक पहुँची… कौन होगा… ये प्रश्न कई बार दिमाग मे कौंध चुका था।
‘मैम … आप….?’ दरवाज़ा खोलते ही पीहू आश्चर्य और सुखद अनुभूति से भर गई… सामने शालिनी मैम खड़ी थीं।
‘हेलो पीहू… अंदर आ जाऊं…?’
‘अरे मैम… मैम … आप बाहर क्यों खड़ी हैं मैम… सॉरी मैम … अचानक आपको देखा तो कुछ समझ नहीं आया…’ दरवाज़े से एक ओर हटते हुए पीहू ने कहा
‘आइए शालिनी मैम …आपका ही इंतज़ार कर रहे थे हम सब… आपको देर हो गयी तो लगा शायद आप नहीं आ पा रहीं हो…’
‘देर मुझे इस खराब मौसम के कारण हो गई… वरना में समय की बहुत पाबन्द हूँ …’ शालिनी ने मुस्कुराते हुए सभी को अभिवादन करते हुए कहा
‘तो पीहू कैसा लगा… तुम्हारी फ़ेवरेट मैम तुम्हारे घर आई हैं…’
मम्मी ने पूछा तो पीहू सिर्फ मुस्कुरा कर रह गई
‘मैम आपका जितना धन्यवाद करूँ उतना ही कम है… आप नहीं होती तो मैं ये चार दिन सब कुछ न जाने कैसे हैंडल कर पाती।’
‘ इसमें धन्यवाद जैसी कोई बात नहीं है सुगन्धा जी… ये तो ड्यूटी है मेरी… और फिर इन बच्चों का भविष्य हमें मिलजुल कर ही तो बनाना है। अगर ये कोई गलती करें तो हमें इन्हें सही रास्ता दिखाना है वो भी इनके आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाए बिना।’
विभु और पीहू सब बातों से अनजान पूछ भी नहीं पा रहे थे कि आखिर सारा माजरा है क्या…?
तभी शालिनी मैम ने प्यार से पीहू को अपने पास बुलाया और पूछा
‘तुम्हारी केस स्टडी कहाँ तक पहुँची पीहू…?’
‘मैम बस थोड़ी सी फाइनल करनी बाकी है… वैसे लगभग पूरी हो चुकी है…’
‘मैम क्या ये पूछने घर तक आईं हैं दी…?’ विभु कानों में फुसफुसाया पीहू के
‘दरअसल पीहू…पिछले तीन दिन तुमने जो इतनी उत्सुकता से नानी की पूरी ज़िंदगी की कहानी, उतार चढ़ाव सुख दुख से भरी आपबीती सुनाई है ना उसकी भूमिका शालिनी जी ने बनाई थी….’ मम्मी के कहते ही पीहू को झटका सा लगा