अश्रुनाद मुक्तक सड़्ग्रह
…. अश्रुनाद मुक्तक सड़्ग्रह ….
सुख-दुख रँग-रञ्जित घेरे
हिय में सन्ताप घनेरे
जीवन के दुर्गम पथ पर
बन जाओ सहचर मेरे
सुधियों से अन्तस रोता
बन मोती , दृग-जल धोता
कविता भावों में प्रमुदित
हिय- माला कण्ठ सँजोता
सुमनों सी सुरभि सुफलता
स्मृतियों से हृदय विकलता
उद्भव हो मानस – रचना
मृदु भावों की चञ्चलता
प्रज्ज्वलित प्रेम लौ – धारा
जगती – उर सत अभिसारा
हिय – दर्पण में प्रतिबिम्बित
अगणित प्रिय ! रूप तुम्हारा
डा. उमेश चन्द्र श्रीवास्तव
लखनऊ
सचल भाष्याड़्क – 9415484488