“अश्क भरे नयना”
नयनो में अश्क भरे वो भी कुछ कहते हैं,
रह रहकर एक पीड़ा उभर आती है।
नयनो की भाषा भी कितनी द्रवित कर देती हैं,
हम कुछ नहीं कह पाते, मन व्यथित कर देती हैं।
काश इन अश्को की पीड़ा में कोई हमदर्द,
धीरे से अपने हाथों से अश्कों को पोछ देता।
रात हो गई नैन निहारे बादल को,
काश मेरे आँसुओ के निशान बरस कर तुम मिटा देते।
आती है क्यों लौट आकाश से प्रतिध्वनि मेरी,
क्यों नयनो में बादल फैला है।
नक्षत्र लोक स्मृतियों के,
झरझर बहते आंसू।
हमसे कुछ कहते हैं,
यादे न जाने वाली।
कितनी बड़ी सहेली है,
नयनों का क्या दोष है।
नयनो में बड़ी पहेली हैं,
जो इतना झेली है।
लेखिका:- एकता श्रीवास्तव।
प्रयागराज✍️