Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
5 Oct 2021 · 10 min read

अशोक विश्नोई एक विलक्षण साधक (पुस्तक समीक्षा)

पुस्तक समीक्षा
■■■■■■■■■■■■■■■■■■■
स्वयं में एक संस्था श्री अशोक विश्नोई
■■■■■■■■■■■■■■■■■■■
पुस्तक का नाम :अशोक विश्नोई एक विलक्षण साधक
लेखक /संपादक : डॉक्टर महेश दिवाकर डी.लिट.
प्रकाशक :विश्व पुस्तक प्रकाशन, 304 -ए ,बी /G-7 ,पश्चिम विहार ,नई दिल्ली 110063
संस्करण 2021
मूल्य ₹200
कुल पृष्ठ संख्या: 144
समीक्षक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. महेश दिवाकर ने अशोक विश्नोई जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर यह पुस्तक न केवल लिखी है अपितु प्रमुखता के साथ संपादित भी की है अर्थात अशोक विश्नोई जी से जुड़े हुए अनेक महानुभावों के विचारों का यह एक आत्मीयता से भरा हुआ संकलन भी बन गया है। इस पुस्तक में अशोक विश्नोई जी की रचनाधर्मिता को दर्शाने वाली कुछ लघु कथाओं और कविताओं के प्रकाशन ने इसको और भी मूल्यवान बना दिया है ।
पुस्तक पढ़ने पर कोई अनजान व्यक्ति भी इस बात से भलीभांति परिचित हो जाएगा कि अशोक विश्नोई जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। साहित्य के क्षेत्र में आपने न केवल एक लघु कथा संग्रह “सुबह होगी” प्रदान किया है अपितु “संवेदना के स्वर” गीत संग्रह तथा “स्पंदन” कविता संग्रह भी साहित्य जगत को प्रदान किए हैं ।आप एक उत्कृष्ट प्रकाशक हैं तथा साहित्यिक समारोहों के कुशल आयोजनकर्ता हैं। पुस्तक पढ़कर पता चलता है कि आप 1970 – 72 में फिल्मी पत्रिका भी निकालते थे । साहित्यिक वार्षिक पत्रिका “आकार” 6 वर्षों तक आपने निकाली । दुर्गा पब्लिकेशन तथा वर्तमान में सागर तरंग प्रकाशन के द्वारा साहित्यिक कृतियों का प्रकाशन आपके द्वारा निरंतर होता रहा है । रंगमंच में आपका योगदान है । अनेक लघु फिल्में आपने बनाई हैं जो किसी न किसी सामाजिक उद्देश्य को समर्पित हैं।
आपका जन्म 10 अगस्त 1945 को यद्यपि बिजनौर जिले की तहसील नगीना में हुआ तथा आप की इंटरमीडिएट तक की शिक्षा भी इसी जनपद में हुई तथापि 1967 के बाद आप मुरादाबाद आ गए तथा तत्पश्चात न केवल मुरादाबाद में रह कर आगे की शिक्षा प्राप्त की अपितु मुरादाबाद ही आपकी कर्मभूमि भी बन गया । यहीं रहकर आपने इतिहास और समाजशास्त्र दो विषयों में एम.ए. किया तथा बी.एड. की परीक्षा उत्तीर्ण की। कुछ समय इंटर कॉलेज में अध्यापक रहे । बाद में प्रिंटिंग प्रेस का व्यवसाय अंगीकृत किया।
पुस्तक में आपके जीवन की संघर्ष पूर्ण कथा तथा सामाजिक सरोकारों से जुड़कर कर्मरत रहने का स्वभाव भली-भांति विस्तार से वर्णित किया गया है । किसी भी व्यक्ति का दूर से परिचय इतना गहरा नहीं होता जितना उसके करीब जाकर महसूस होता है। इस दृष्टि से उन व्यक्तियों के संस्मरण ज्यादा मूल्यवान हैं जिन्होंने अशोक विश्नोई जी के साथ काम किया और इस पुस्तक में अपने विचारों को आकार प्रदान किया। 1970 – 72 में विश्नोई जी ने “सिने पायल “नाम की एक फिल्म पत्रिका प्रकाशित की । श्री मशकूर चौधरी ,फिल्म निर्देशक मुंबई के शब्दों में :-

“श्री अशोक विश्नोई द्वारा प्रकाशित फिल्म पत्रिका सिने पायल के प्रतिनिधि के रूप में विश्नोई जी ने मुझे मुंबई भेजा। वहां पर मैंने पत्रिका की सामग्री एकत्र कर पत्रिका में प्रकाशनार्थ भेजना आरंभ कर दिया ।इसी बीच श्री विश्नोई जी का मुंबई में आना-जाना लगा रहा । तभी उनके साथ अनेक फिल्मी कलाकारों के साक्षात्कार हम दोनों ने लिए।”( पृष्ठ 122 )
श्री मशकूर चौधरी के उपरोक्त कथन का प्रमाण अशोक विश्नोई जी की युवावस्था के वह चित्र दे रहे हैं जो प्रसिद्ध अभिनेता और अभिनेत्रियों यथा शत्रुघ्न सिन्हा ,सिम्मी ग्रेवाल ,अभिनेत्री बिंदु ,जगदीश राज ,रणधीर कपूर ,राजेंद्र कुमार आदि के साथ पुस्तक में प्रकाशित हैं । इनसे फिल्मी दुनिया के साथ अशोक विश्नोई जी के उत्साही जीवन का पता चलता है । उनकी बड़ी उड़ान थी और उन्होंने क्षितिज पर बहुत खूबसूरत चित्र बिखेरे भी।
जो व्यक्ति फिल्मी दुनिया में जाता है, उसका रंगमंच से भी संपर्क आश्चर्य की बात नहीं कही जा सकती। रंगमंच के प्रति अशोक विश्नोई जी के लगाव का वर्णन उनके मित्र डॉ प्रदीप शर्मा के शब्दों में प्रस्तुत करना अनुचित न होगा :-
“श्री अशोक विश्नोई जी को रंगमंच से हमेशा ही लगाव रहा है । वह रंगमंच के इतने दीवाने रहे कि इनके पुराने घर पर न जाने कितने नाटकों की रिहर्सल होती रहती थी । मैं इन रिहर्सल में उनके साथ रहता था। विश्नोई जी रंगमंच के प्रेमी तो थे ही ,उनका रंगमंच में अभिनय करने का भी शौक रहा है। पारसी रंगमंच सम्राट मास्टर फिदा हुसैन नरसी के निर्देशन में आगा हश्र कश्मीरी द्वारा लिखित नाटक “तुर्की हूर” में मुख्य भूमिका मास्टर फिदा हुसैन नरसी की थी । इस नाटक में सहयोगी के रुप में मुरादाबाद के अनेक कलाकार थे ,जिसमें विश्नोई जी भी सहयोगी कलाकार के रूप में थे । इस नाटक में विश्नोई जी की संवाद अदायगी और अभिनय देखकर हम लोग आश्चर्यचकित रह गए ।….रामलीला मंचन एवं नाट्य मंचन की मुरादाबाद की प्रसिद्ध संस्था आदर्श कला संगम द्वारा आयोजित नाट्य प्रशिक्षण शिविर तथा गायन प्रतियोगिता आदि जितने भी कार्यक्रम होते ,उनकी स्मारिकाएँ प्रकाशित करना तथा संपादन करने का दायित्व विश्नोई जी निभाते थे । नए कलाकारों को उत्साहित करना तथा नए अवसर प्रदान करना उनके व्यक्तित्व का प्रमुख अंग है । (पृष्ठ 121 ,122)
पुस्तक के अनुसार विश्नोई जी ने अनेक लघु फिल्मों का फिल्मों का निर्माण किया है जिनके नाम इस प्रकार हैं :-मैं भी जीना चाहती हूं ,मेरा क्या कसूर था ,नर्क ,शपथ । “शपथ” लघु फिल्म के प्रीमियर के अवसर पर ही इस समीक्ष्य -पुस्तक का लोकार्पण भव्य रुप से एमआईटी सभागार मुरादाबाद में 3 अक्टूबर 2021 को संपन्न हुआ था, जिसमें एक सौ से अधिक साहित्यकारों, समाजसेवियों तथा कलाकारों की भव्य उपस्थिति दर्ज हुई थी । इन पंक्तियों के लेखक को भी इस अवसर पर कार्यक्रम में उपस्थित रहने तथा अशोक विश्नोई जी के सम्मान में कुंडलिया छंद पढ़ने का सुअवसर मिला था । वास्तव में वह एक अद्भुत संगठनकर्ता तथा सटीक निर्णय लेने वाले व्यक्तियों में से हैं।
किसी भी व्यक्ति को सफलता तभी मिलती है जब वह समय का पाबंद होता है। अशोक विश्नोई जी की अनुशासनप्रियता का चित्र पुस्तक में उनके साथी प्रदीप गुप्ता मुंबई ने इन बोलते शब्दों में किया है:-

“अपनी बैंक प्रबंधन कौशल पुस्तक के लिए मैं एक अच्छे मुद्रक की तलाश में था ।..अशोक भाई ने जिम्मेदारी ली और महीनों का काम सप्ताहों में निपटा दिया । मेरी डेडलाइन 14 अगस्त थी । पिछले दुखद अनुभवों के आधार पर मुझे भरोसा नहीं था। 13 तारीख को जबरदस्त बारिश हो रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे रुकेगी ही नहीं । घर के सामने सड़क पर कोई एक फीट पानी बह रहा था । तभी क्या देखता हूं अशोक भाई रिक्शा में मुद्रित पुस्तक लेकर आ रहे हैं। यह उनका अपने पेशे के प्रति समर्पण दर्शाता है ।”(पृष्ठ 9 )

वास्तव में जिम्मेदारी के साथ काम करके ही कोई व्यक्ति महान बन सकता है। कार्य के प्रति ईमानदारी और समय पर कार्य करके दिखा देना यही वह गुण होते हैं जो व्यक्ति को महान बनाते हैं ।अशोक विश्नोई जी में यह गुण भरे हुए हैं। अशोक विश्नोई जी की एक प्रकाशक तथा साहित्यिक कार्यक्रमों के कुशल आयोजनकर्ता के रूप में छाप अद्भुत रूप से मुरादाबाद के इतिहास पर अंकित हो गई है । दो प्रकार के लोग होते हैं । एक वे जो कुछ लिखते हैं। दूसरे वे जो समारोहों में जाकर अपनी रचनाओं को पढ़ते हैं। लेकिन अशोक विश्नोई जी में एक तीसरा गुण भी है। वह यह है कि उन्होंने मुरादाबाद के लोकजीवन में स्मृतियों पर छा जाने वाले समारोहों का सफलतापूर्वक आयोजन किया । इसके संबंध में अम्बरीश गर्ग ,काशीपुर (उत्तराखंड) का यह संस्मरण पढ़ने योग्य है:-

” श्री अशोक विश्नोई जी को विरासत में कुछ नहीं मिला । दुर्गा प्रिंटिंग प्रेस इन के अपने परिश्रम का परिणाम था ।सागर तरंग प्रकाशन इन की गतिशीलता एवं इनके साहित्य से लगाव का प्रतिफल था ।सिने जगत में इनका परिचय एवं प्रतिष्ठा इनके आचरण ,इनकी व्यवहार कुशलता एवं इनके सौम्य स्वभाव का उत्पाद है। इन की उपलब्धियां स्वयं अर्जित हैं।… अनेक रचनाकारों की रचनाओं का संकलन “31 अक्टूबर के नाम” विश्नोई जी ने श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या होने पर श्रद्धांजलि-स्वरुप प्रकाशित किया था । उसके लोकार्पण कार्यक्रम में अनेक नामधन्य साहित्यकारों सहित आकाशवाणी रामपुर की टीम भी उपस्थित रही थी । मुरादाबाद में इस प्रकार का भव्य आयोजन मेरी दृष्टि में प्रथम बार आयोजित किया गया था। इसके उपरांत अशोक जी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा । सातवें दशक की वह काव्य गोष्ठी समकालीन साहित्यकारों को स्मरण होगी जो विश्नोई जी ने हरपालनगर स्थित अपने आवास पर होली के अवसर पर आयोजित की थी। वह गोष्ठी मुरादाबाद की साहित्यिक गोष्ठियों की आधारशिला थी । अशोक जी के आवास में स्थित प्रिंटिंग प्रेस एक प्रकार से मुरादाबाद का हिंदी-भवन था ।प्रायः दिन भर वहां साहित्यकारों का आगमन लगा रहता था ।सभी साहित्यकारों का यथोचित जलपान कराकर सत्कार करना विश्नोई जी के स्वभाव में था ।वस्तुतः दुर्गा प्रिंटिंग प्रेस साहित्यिक गतिविधियों का केंद्र बन गई थी। शंकर दत्त पांडे ,दिग्गज मुरादाबादी ,भूपति शर्मा जोशी ,पुष्पेंद्र वर्णवाल सरीखे साहित्यकार प्रतिदिन ही वहां जाया करते थे।” (प्रष्ठ 14 ,15 ,16)
फिल्मी पत्रिका निकालने का कार्य कितना कठिन रहा होगा ,इसके बारे में श्री प्रदीप गुप्ता ( मुंबई )का संस्मरण सुनिए :-

“प्रेस लगाने के साथ ही अशोक भाई ने फिल्मी पत्रिका का प्रकाशन आरंभ किया। हिंदी फिल्मों के केंद्र मुंबई से 1500 किलोमीटर दूर नामचीन शहर मुरादाबाद से अब से 45 वर्ष पूर्व फिल्मी पत्रिका का निकालना चुनौती और दुस्साहस दोनों ही था क्योंकि उस दौर में गूगल बाबा नहीं थे । डाक की व्यवस्था भी बहुत ढीली – ढाली थी। अशोक भाई ने मशकूर चौधरी को स्थाई रूप से मुंबई में पत्रिका के स्थाई प्रतिनिधि के रूप में स्थापित किया । यही नहीं समानांतर मुरादाबाद शहर में भी फिल्मी लेखकों की बड़ी टीम तैयार की । इस टीम में पुष्पेंद्र वर्णवाल ,सतीश ढींगरा और कई अन्य महारथी थे । मैं भी बाबर के नाम से उनके लिए एक गासिप कालम लिखा करता था । पत्रिका ने अपने आकर्षक गेटअप और सुरुचिपूर्ण कंटेंट के कारण स्थापित कर लिया ।”(प्रष्ठ 8)
अब आइए पुस्तक में वर्णित अशोक विश्नोई जी के साहित्यिक योगदान के पथ पर स्थापित मील के उन तीन पत्थरों पर भी दृष्टिपात अवश्य किया जाए जो पुस्तकों के रूप में इतिहास में सदा सदा के लिए अपनी छाप छोड़ गए।
1989 में 72 पृष्ठ का 68 लघु कथाओं का संग्रह अशोक विश्नोई जी द्वारा लिखित प्रकाशित हुआ । इसकी कुछ लघु कथाएँ समीक्ष्य पुस्तक में प्रकाशित हुई हैं। “स्वार्थ की हद” शीर्षक से एक लघु कथा आपके सम्मुख प्रस्तुत करना आवश्यक होगा ,ताकि पाठक अशोक विश्नोई जी के लेखन के पैनेपन तथा उनमें निहित सामाजिक विसंगतियों की पीड़ा को महसूस कर सकें।:-

एक दिन पहले ही ननकू ने बहु को आवाज लगाकर कहा ” अरी बहू ,लो !यह जेवरों का डिब्बा अपने पास रख लो । मेरा क्या है ,जब तक दीपक में तेल है तभी तक चल रहा हूं। आज उजाला है पता नहीं कब अंधेरा हो जाए ? जीवन का क्या भरोसा ?
सुबह-सुबह ससुर ने बहु को आवाज दी”बहू !अरी बहू ! दस बज गए हैं और चाय अभी तक नहीं बनी । क्या बात है ?”
लेकिन बहू बिना कुछ कहे तीन चार चक्कर ससुर के सामने से लगा कर चली गई। उत्तर कुछ नहीं दिया । वृद्ध ससुर ने एक लंबी सांस ली । उसे समझते देर नहीं लगी । उसने दीवार की ओर देखा जहाँ घड़ी टिक टिक करती आगे बढ़ रही थी।”(प्रष्ठ 55 )

उपरोक्त लघु कथा का अंत टिक टिक करती हुई घड़ी के साथ करके लेखक ने एक प्रकार से यह बताने का ठीक ही प्रयास किया है कि समय बीतता जा रहा है और मनुष्य के पास सिवाय हाथ मलने के और कुछ शेष नहीं रह गया है।
आइए अशोक विश्नोई जी के कवि- रूप से भी इसी पुस्तक के माध्यम से थोड़ा परिचय प्राप्त कर लेते हैं । 2008 में “संवेदना के स्वर” 152 पृष्ठीय काव्य संग्रह है । इसमें लिखित एक गीत की कुछ पंक्तियाँ भला किसके हृदयों को झकझोर कर नहीं रख देंगी !:-

तेरी चिट्ठी आज बाँच दी मैंने इस चौपाल पर
गली-गली से मांग-मांग कर बच्चे रोटी खाते
हैं
पानी पीकर कभी-कभी तो भूखे ही सो जाते हैं
साफ दीखती हैं गर्दिश की रेखाएँ इस भाल पर
××××××××××
रोते-रोते थक जाते हैं कैसे उनको समझाऊं
नाना-नानी के किस्से मैं कब तक उन्हें सुना पाऊं
छोड़ दिया है मैंने उनको बस उनके ही हाल पर
तेरी चिट्ठी आज बाँच दी मैंने इस चौपाल पर (प्रष्ठ 67)
सचमुच जो चिट्ठी अशोक विश्नोई जी के कवि ने बाँची ,वह इस देश के हालात पर मार्मिकता के साथ स्वयं को अभिव्यक्त कर रही चिट्ठी है । यह देश का पत्र है ,जो देशवासियों के नाम है।
वर्ष 2018 में प्रकाशित अशोक विश्नोई जी की अतुकांत कविताओं का संग्रह “स्पंदन”विचार प्रधान है । 128 प्रष्ठों में फैली इन कविताओं में मूलतः व्यक्ति की रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़े प्रश्न उठाए गए हैं । भूख, गरीबी ,बेकारी और संवेदन-हीनता की स्थितियों ने मनुष्य को भीतर से तोड़ कर रख दिया है । “स्पंदन” की एक मानवीयता के भावों को उजागर करती आशा की किरण रूपी कविता इस प्रकार है :-

मानवीयकरण तब हुआ
जब किसी ने मुझे छुआ
और पूछा आप ठीक तो हैं ( प्रष्ठ 111 )

मुश्किल से दो चार पंक्तियों में अपनी बात को बखूबी कह देने की कला अशोक विश्नोई जी में है । लेकिन उनका व्यंग्य बहुत मारक है । राजनीति में जो लोग सक्रिय हैं साधारतः जनता उनसे ऊब चुकी है । कुछ ऐसी ही भावनाओं को अशोक विश्नोई जी ने अपनी एक अतुकांत कविता में कितनी मासूमियत के साथ अभिव्यक्ति दी है ! देखिए :-

एक नेता अपनी मृत्यु का समाचार पढ़कर
खो बैठा अपना आपा
संपादक से जाकर बोला
मैं अभी जिंदा हूं
तुमने मेरी मृत्यु का समाचार क्यों छापा ? इसका खंडन छापो।
अगले दिन खंडन छपा जो इस प्रकार था
श्री नेताजी की मृत्यु का समाचार
गलत प्रकाशित हो गया था
वह अभी जिंदा हैं
इसका हमें खेद है। (पृष्ठ 100)

कुल मिलाकर 75 वर्ष के जीवन में अशोक विश्नोई जी ने अपनी कला के अनेक रंग इतिहास के क्षितिज पर बिखेरे हैं । उनका उत्साह ,सामाजिकता से ओतप्रोत स्वभाव ,कर्मठता से परिपूर्ण जीवन-शैली तथा अनुशासन-प्रियता के अनेक गुणों से पाठकों को बहुत कुछ सीखने को मिल सकता है । यह पुस्तक उन लोगों के लिए भी एक सबक होगी जो जिंदगी में शॉर्टकट से लक्ष्य पाने का प्रयास करते हैं । वस्तुतः गहरी साधना और पराजित हो-होकर भी विजय प्राप्त करने की अदम्य जिजीविषा ही उस व्यक्ति का निर्माण करने में सफल हो पाती है, जिसका नाम अशोक विश्नोई है।

1 Comment · 936 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Ravi Prakash
View all
You may also like:
मेरा चाँद न आया...
मेरा चाँद न आया...
डॉ.सीमा अग्रवाल
*लक्ष्मी प्रसाद जैन 'शाद' एडवोकेट और उनकी सेवाऍं*
*लक्ष्मी प्रसाद जैन 'शाद' एडवोकेट और उनकी सेवाऍं*
Ravi Prakash
रक्षाबंधन
रक्षाबंधन
Dr Archana Gupta
23/95.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
23/95.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
बर्फ़ के भीतर, अंगार-सा दहक रहा हूँ आजकल-
बर्फ़ के भीतर, अंगार-सा दहक रहा हूँ आजकल-
Shreedhar
परिवार
परिवार
Neeraj Agarwal
बचपन का प्रेम
बचपन का प्रेम
निरंजन कुमार तिलक 'अंकुर'
■ आज का क़तआ (मुक्तक)
■ आज का क़तआ (मुक्तक)
*प्रणय प्रभात*
फितरत
फितरत
kavita verma
"" *भगवान* ""
सुनीलानंद महंत
आजादी का दीवाना था
आजादी का दीवाना था
Vishnu Prasad 'panchotiya'
वक़्त
वक़्त
Dinesh Kumar Gangwar
जीवन का रंगमंच
जीवन का रंगमंच
Harish Chandra Pande
उसकी खामोशियों का राज़ छुपाया मैंने।
उसकी खामोशियों का राज़ छुपाया मैंने।
Phool gufran
दिव्य ज्योति मुखरित भेल ,ह्रदय जुड़ायल मन हर्षित भेल !पाबि ले
दिव्य ज्योति मुखरित भेल ,ह्रदय जुड़ायल मन हर्षित भेल !पाबि ले
DrLakshman Jha Parimal
थोड़ा पैसा कमाने के लिए दूर क्या निकले पास वाले दूर हो गये l
थोड़ा पैसा कमाने के लिए दूर क्या निकले पास वाले दूर हो गये l
Ranjeet kumar patre
चला गया
चला गया
Mahendra Narayan
*मेरा वोट मेरा अधिकार (दोहे)*
*मेरा वोट मेरा अधिकार (दोहे)*
Rituraj shivem verma
रूह की अभिलाषा🙏
रूह की अभिलाषा🙏
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
बरसात आने से पहले
बरसात आने से पहले
Dr. Ramesh Kumar Nirmesh
संवेदना (वृद्धावस्था)
संवेदना (वृद्धावस्था)
नवीन जोशी 'नवल'
अंदाज़े बयाँ
अंदाज़े बयाँ
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
अधरों ने की  दिल्लगी, अधरों  से  कल  रात ।
अधरों ने की दिल्लगी, अधरों से कल रात ।
sushil sarna
"समय"
Dr. Kishan tandon kranti
*
*"ब्रम्हचारिणी माँ"*
Shashi kala vyas
छंद
छंद
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
शेखर सिंह
शेखर सिंह
शेखर सिंह
वेलेंटाइन डे एक व्यवसाय है जिस दिन होटल और बॉटल( शराब) नशा औ
वेलेंटाइन डे एक व्यवसाय है जिस दिन होटल और बॉटल( शराब) नशा औ
Rj Anand Prajapati
ज़िंदा हूं
ज़िंदा हूं
Sanjay ' शून्य'
अपनी सोच
अपनी सोच
Ravi Maurya
Loading...