अशोक तो मां बाप को भगवान रूप में
माँ और बाबू जी के लिए ये भले ही प्रयास अच्छा ना हो पर माँ बाप को समर्पित मेरी गीतिका….
जिंन्होंने हमारे लिए ना जाने कितने गम उठाए हैँ।
दुश्वार जिंदगी जीकर पसीनों से अक्सर नहाए हैं ।
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तूफानों में हम पर माँ बाप की दुआ हमारे साथ।
हमारी रक्षा में अब माँ बाप के आँचल के साये है।
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जाने कितनी गम की काली रातें काटी है उन्होंने ।
जो हमको इस जहाँ में औलाद के रूप में पाये हैं ।
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हे अपना भी फ़र्ज़ उनके लिए कुछ करें हम यारों।
जिनकी मिन्नतों से हम इस दुनियां में भी आये है।
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जा ख़ुदा तुझको नहीं ढूंढे अशोक मंदिर मस्जिद ।
अशोक तो माँ बाप को भगवान रूप में बिठाए है।
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अशोक सपड़ा की कलम से दिल्ली से