अशेष संवेदना
भावनाएं दर तुम्हारे दरमियां ।
एक अंजरी धूप तरसे खिड़कियां।
मुस्कुराने की रसम कर लो अदा
उलझनों की फिर बसें न बस्तियां।।
आज भर की जिंदगी जी लो इसे।
कल क्या होगा दोष फिर दोगे किसे।
पूछने आये न तेरा हाल क्या —–
फिर गला दो चाहे जितनी हड्डियां ।।
चांद तारों से अपना घर सजा दो
तुम फलक पर आसियाना बना दो
शेष फिर होगी नहीं संवेदना,
फिर गिनाएं सांस मद्धिम गलतियां।।
कुछ दया ममता पुनः उधार लो।
दर्द, ग़म औरों के भी पुचकार लो।
प्यार करुणा से उसे निखार कर,
अब दुःखों की ना गिरे बिजलियां ।।
अब मनुजता लुप्त होती जा रही।
संवेदना पंख खोती जा रही।
अहम्,और पाखंड तूती बोलती,
बस अखाड़े दांव लड़ते कुश्तियां।।