अशांत मन
मैं विक्षिप्त हूँ शांति के लिए
यह आती है कहाँ से
और चली जाती है कहाँ
अभीतक मैं इसी संशय से युक्त हूं ।
जब ढूंढता हूं मैं उसे पाने के लिये
तो वह मिलती नही
दूर- दूर तक देखता हूं उसे
तो वह दिखती नही
अशांत अनल है मेरे अंदर
इसलिये तप्त हूँ ।
चारो ओर कोलाहल है
तो सोचता हूँ सन्नाटे में चलुं
पर सन्नाटा हाथ जोड़ लेता है
कहता है आपका आगमन
हमें अशांत कर देगा
मुझे लानत है इस तन पर
जो अभिशप्त हूँ ।
मैं शिमला जाऊं या कश्मीर
कोई फर्क पड़ता नही
किस गुफा में समाउँ
यह समझ आता नही
मेरी अभिलाषा तू मेरा साथ छोड़ दे
बहुत दुख होता है
तुझे नजदीक रखने से
अन्ततः कुछ मिलता नही
इसलिये सुस्त हूँ ।
जब पता चला कि अन्तःकरण में दोष है
शान्ति पाने के लिए
एक उपाय संतोष है
क्रंदन कर उठा मेरा मन
चीत्कार किया
मैं हीं सत- असत हूँ । ?
,, साहिल का व्यथित मन …..