अव्यक्त प्रेम
अव्यक्त प्रेम
शायद नहीं
कह पाये तुम कभी
अपने हृदय की बात।
ये एकतरफा प्यार
भी अदभूत शक्ति देता है।
जीने की
ग़म छुपा कर हंसने की।
कुछ ख़त भी रखें होंगे
किसी पुस्तक के पन्नों में छिपा।
जो तुमने कभी मुझे दिये ही नहीं।
एक डायरी में कुछ सूखे गुलाब
भी होंगे
जो अनायास कभी निकल आये तो
यादों में खो जाते होंगे तुम।
कभी कभी गुस्सा भी आता होगा
अपने अव्यक्त प्रेम पर।
सोचते रह गये
जज़्बात कोहराम मचाते रहे होंगे
चीखते रहे होंगे अल्फ़ाज़
पर तुम लब न हिला पाये
एक इशारा ही कर दिया होता
ये भी मन में ख्याल आता होगा
पर तूने तो आंख उठाकर
देखा ही नहीं
और उलझे रहे मन ही मन
निहारते रहे मुझे आते जाते
करीब से गुजरते
बस ,……मौन।
और मैं,………
इंतजार में रही
तुम्हारे_____?
मौन।।
सुरिंदर कौर