अवसाद का इलाज़
डॉ अरुण कुमार शास्त्री – एक अबोध बालक – अरुण अतृप्त
* अवसाद का इलाज़ *
इंसानी जीवन में मात्र एक पक्का भरोसे मंद दोस्त ही होता है हर समस्या का समाधान , तन से मन से धन से जो हमेशा बचपन से साथ होता है जिनका है वो भाग्य शाली हैं और जिनका नहीं वो उसको हरएक में पाने की अथक कोशिश करते नजर आते हैं सदा महिला हो या पुरुष सभी की यही कहानी है । तो मित्रों मेरी मेरी कहानी के शीर्षक के पीछे ऐसा ही एक शख्स छुपा है जिसको हम * दोस्त * नाम से पुकारते हैं ।
रमेश मेरा ऐसा ही मित्र , दोस्त साथी था कक्षा 5 से हम एक ही शहर में रहते थे । जीवन के एक मोड़ पर वो ऐसी पारिवारिक दुविधा में फंस गया कि उसको कुछ समझ नहीं आता था । और वो उसका छुटकारा पाने की इच्छा से नशे की आदत का शिकार हो गया । काम काज के सिलसिले में हम रोज – रोज तो मिल नहीं पाते थे । फिर भी महीने पंद्रह दिन में हम एक दूसरे के घर अवश्य जाते थे साथ – साथ पिक्चर देखना , पिकनिक पे जाना या घर पे ही रात्री भोजन इत्यादि यही हमारी दिन चर्या थी । किसी भी तरह का कोई सामाजिक धार्मिक कृत्य हो हम सपरिवार सब एकत्र होते या जाते थे । समाज में हम राम लक्ष्मण की जोड़ी के नाम से प्रसिद्ध थे । हमारे परिवार के अन्य सभी लोग दूर दराज के शहरों में रहने के कारण हमारा दोस्ती का ये संबंध ही सब कुछ था ।
तो इस बार 15 दिन के बाद मैं जब परिवार सहित रमेश के घर गया तो उसके घर का वातावरण देख अचंभित रह गया । पत्नी को बोला जरा संगीत (रमेश की पत्नी ) से पता कर क्या हुआ । तब तक रमेश नहीं आया था आमतौर पे वो 8 बजे आ जाता था मगर , अब परिस्थिति भिन्न थी । पत्नी ने जब अकेले में संगीत से बात की तो वो फफक – फफक के रोने लागी । फिर सारी कहानी समझ आई । उसका सार ये था । महत्व कांक्षा के चलते , रमेश ने दो साल पहले एक प्राइवेट बैंक से 10 लाख रुपये का ऋण लिया था जिसका भुगतान उसको 2 साल के भीतर ब्याज सहित कर देना था जो हो न सका लोन के बदले रेहन के लिए घर गिरवी रखा था । अब बैंक ने उसके घर की कुर्की का नोटिस भेजा था यदि 10 दिन मे लोन की पूरी रकम नहीं लोटाई तो बैंक घर नीलाम कर के ऋण की अदायगी करेगा । रमेश ने लज्जा के कारण ये बात मुझ से छुपाई । और ना समझदारी के चलते वो उसका हाल नशे में परिवार से दूर रह कर तलाशने लगा – जो की उसकी सबसे बड़ी भूल थी ।
मैंने रमेश को फोन लगाया तो फोन किसी अनजान व्यक्ति जो की बार का संचालक था , ने उठाया बोला के ये साहब बार में नशे की हालत में अर्ध बेहोशी में पड़े हैं ऐसा रोज होता है तो हमने ज्यादा तव्वजों नहीं दी । मैं तुरंत गाड़ी से वहाँ गया और रमेश को लेकर घर आया , सबने मिल कर उसको नहला धुला कर उसके वस्त्र बदले तो वो कुछ होश में आया मुझे पहचान कर माफी मांगने लगा । हम सबने बैठ कर एक साथ भोजन किया । चलते समय मैंने रमेश को बोला यार कल मेरे घर पे आना एक जरूरी काम है वो बोला अच्छा । फिर हम वहाँ से वापिस या गए ।
सुबह 9 बजे जब रमेश मेरे घर आया तो देखा उसकी काया पहले जैसी नहीं रह गई थी मात्र 15 दिन में बीमार – बीमार सा लगने लगा था – आँखों के नीचे स्याह गड्ढे , गले की नसें नजर आने लगी थी । मेरा यार कितना बदल गया था । हम दोनों ने साथ बैठ कर नाश्ता किया फिर हम उसको लेके उसके बैंक गए । बैंक मेनेजर मेरा दोस्त था । उसको मैंने लिखित में रमेश के ऋण की 6 माह में किश्तों में अदायगी का आश्वासन दिया । रमेश चुपचाप देखता रहा । वो मुझे अच्छी तरह से जानता था सो कुछ नहीं बोला। बस मेरे हाथ पकड़ के बैठ गया और आँखों – आँखों से अपनी कृतज्ञता प्रदर्शित करता रहा । फिर कान पकड़ के बोला आज से नशे को मुहँ नहीं लगाऊँगा मेरे यार मुझे माफ कर दे । मैंने चुपचाप उसको सीन से लगा । हमारे साथ – साथ बैंक मैनेजर की आंखे भी भीगने लगी थी फिर मैंने वातावरण को बदलने के लिए बोला यार रस्तोगी ( बैंक मेनेजर ) काफी नहीं पिलाओगे और हम सब जोर – जोर हंसने लगे ।