अवसाद एक पीड़ा
सुना है….
अवसाद एक रोग है
कभी खुद का
कभी दूसरों का भोग है ,
मुझे लगता है….
ये रोग नही पीड़ा है
एक अनजाना सा
अजीब सा कीड़ा है ,
अचानक ये….
पता नही कहाँ से आता है
दिमाग पर
अपना अधिकार जमाता है ,
ज्यादातर….
इसके लक्षण दिखाई नही देते हैं
अंदर ही अंदर
ये दीमक सी हरकतें करते हैं ,
यहाँ तक की….
पीड़त भी नही समझ पाता
बस इसको
हमेशा रहता है नकारता ,
कहता है….
थोड़ा सा डिप्रेशन है
या शायद
कुछ – कुछ फ्रस्टेशन है ,
इस पीड़ा को….
समझने की अनुभूति चाहिए
और पीड़ित को
अपनों की सहानुभूति चाहिए ,
थोड़े धैर्य से….
अपनों को अपने को संभालना है
ना की उसके
इस दर्द को नकारना है ,
सारे अपने….
बिना चोट की पीड़ा को समझें
इसे चेतावनी समझ
इस पीड़ा से पीड़ित अपने से ना उलझें ,
अपने का….
बनके सहारा
ऐहसास दिलाओ
तू ही है सबसे प्यारा ,
सबसे ज्यादा….
उसकी ही फिक़्र हो
उसकी पीड़ा का
नही कोई ज़िक्र हो ,
देखो फिर….
प्यार से प्यार कैसे निखरता है
अपनों के बीच
ये अपना कैसे संवरता है ,
सभी को…
लड़नी होगी इस पीड़ा से लड़ाई
ये दुश्मन है
और है ये पराई ,
पर ज़रा ध्यान से….
अगर ज़रा सी रह गई कोई कसर
तो रह जायेगा
बस काश – अगर…काश – अगर ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 23/06/2020 )