अवनि अंबर
****अवनि अंबर***
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सूरज से धरती मिली
अंधेरों की बात कही
रवि रौशनी दान दिया
प्रकाश से धरा खिली
नीले नभ से भू कहे
प्यास से प्यासी है मरे
मेघों की थी गर्जन हुई
बरसात से प्यास बुझी
पवन से वसुंधरा बोली
गर्मी से है झुलस रही
शीत समीर तीव्र चली
निदाघ को भगा उड़ी
खोटाई से वसुधा भरी
अग्नि से कहे मनचली
तभी हुई थी आगजनी
कुटिलता भी संग जली
रजनी तम से सनी हुई
सबको दे विश्राम घड़ी
दिन में दिनकर है आए
भू को दर्पण दे दिखाई
मनसीरत अवनि अंबर
दूर चाहे जितना मंजर
मंजिलें मिल ही जाती
मिलन की चाहत बड़ी
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)