अवनि अंबर से मिल जाए
अवनि अंबर से मिल जाए
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अवनि अंबर से मिल जाए
रोम रोम भू का खिल जाए
नभ में जो हैं चमकते तारे
रजनी भी रोशन हो जाए
मेघों की काली घटा छाये
प्यास धरती की बुझा जाए
चाँद निकले जब व्योम में
निशा को चाँदनी कर जाए
चमन खूब गुलजार होता है
क्यारी फूलों की खिल जाए
श्वेत मोतियों सी वर्षण बूँदै
खेत खलिहान खिल जाए
धरा नभ की उपासना करे
गगन झट से नीला हो जाए
मनसीरत पृथ्वी का यौवन
पल में ज्वारभाटा आ जाएं
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)