अवधी मुक्तक
ना धोती ना कुरता ना गमछा कै अब चलन रहा
पच्छूँ के ख़्वाहिस मा समाज ई आपन मगन रहा
काव कही जब से ई डेनिम कै फैसन आय गवा
नौका पीढ़ी पहिर कै कपड़ा आधेस ज्यादा नगन रहा
प्रीतम श्रावस्तवी
ना धोती ना कुरता ना गमछा कै अब चलन रहा
पच्छूँ के ख़्वाहिस मा समाज ई आपन मगन रहा
काव कही जब से ई डेनिम कै फैसन आय गवा
नौका पीढ़ी पहिर कै कपड़ा आधेस ज्यादा नगन रहा
प्रीतम श्रावस्तवी