अवधी कविता
द्याखौ को हुवै परधान भला
द्याखौ को हुवै परधान भला।
जे कबहूं ना मुंहि ते बोले
उइ बढ़िकै हाथु मिलाय रहें,
जे कबहूं ना पयलगी किहिन
उइ पांयन परि चिल्लाय रहें,
आवा पंचयती का चुनाव
प्रत्यासी चक्कर काटि रहें,
सब अपनी वोटै जोरि जोरि
औ दुसरेव केरी छांटि रहें,
चाहे जस हुवै कि मिलै वोट
सब आपनि जुगति लगाय रहें,
पर जीत हमारि हुवै कइसे
यह बात सोचि पछिताय रहें,
अब वोट के ठेकेदारन कै
द्याखौ तौ माटी सोना है,
प्रत्यासिन ते नोटै लइकै
बइठे हैं अपना काम चला।
द्याखौ को हुवै परधान भला।।
एक रोज गांव के जगमोहन
भोरहे दरवाजे आय गयें,
सब ठीक-ठाक सूधू भइया
अउतै आवति जैराम किये,
हम कहा कि सब कुछ ठीक रहा
आगे का राम विधाता है,
जो बिगरि गवा सो बिगरि गवा
जो बनता राम बनाता है,
बोले भइया बीती छ्वाडौ
अब हाल बताओ वोटन कै,
गर खाय पियै कै दिक्कति है
तौ बात करौ कछु नोटन कै,
हम कहा कि नोटै का खइबै
जब तबियत हमरिव ठीक नहिंन,
यतना सुनिकै जगमोहन के
दिल का सारा अरमान जला।
द्याखौ को हुवै परधान भला।।
बोले कि दवा करउबै हम
पर बात एकु मानौ हमरी,
यह वोट दिहौ परमेसुर का
सब कुशल क्षेम रइहैं तुम्हरी,
तुम दवा करावौ ना हमरी
हम वाट तौ उनका ना द्याबै,
दस बरस बीतिगै परधानी
हम छपरै तरे गुजरि जाबै,
पहिली बेरिया जब खड़े भयें
तब कहिन रहै सूधू दादा,
आवास तुम्हारौ बनवइबै
यहु हमरौ पक्का है वादा,
जब जीति गये मुंहु फेरि लिहिन
ना काम किहिन अब तक कउनो,
अइसे मनई का वोट दिहे ते
का फयदा जो जाय छला।
द्याखौ को हुवै परधान भला।।
जब बड़ी द्यार तक बात चली
कउनौ फयदा ना जानि परै,
तब जगमोहन उल्टे पांवन
अपने घर कै रस्ता पकरै,
मंगरू काका पहुंचे तब लौ
उइ कहिन कि सूधू का हुइगा,
हम कहा कि अबही जगमोहना
एकु छ्वाट क्वार परचा दइगा,
काका बोले यहु जगमोहना
परचार करै परमेसुर कै,
पर खाय पियै मुर्गा दारू
साथे घूमै रामेसुर के,
परसों माधौ के दरवाजे
यहु बइठा बातै चिकनावै,
जे यहिकी बातै मानि लियै
वहु पक्का ध्वाखा खाय लला।
द्याखौ को हुवै परधान भला।।
रामेसुर के दरवाजे सब
रातिव दिन हाट लगाय रहें,
दारू गांजा मुर्गा बकरा
सिगरेटै पान चबाय रहें,
रुपिया पइसा सब मांगि मांगि
जेबन मा डारे घूमि रहें,
अब चाय समोसा दारू पी
सब धुत्त नशे मा झूमि रहें,
सूधू तुम दीन्हौ “प्रेमी” का
वहु अपनी बराबरी का है,
गर नींक नहिंन तौ बुरौ नहिंन
वहु अपनी बिरादरी का है,
काका उनहिन का वाट द्याब
यहु पहिलेन ते हम सोचेन है,
चाहे वहु जीतै, ना जीतै
पर वाटै वहिका द्याब खुला।
द्याखौ को हुवै परधान भला।।
——– डॉ सतगुरु प्रेमी