अवधी कविता- जाडा
जाडा आवा।
ठिठुर ठिठुर सी सी बोलय सब।
छिपे रहै न मुह खोलय सब।
डगर होइगवा सून।
जमत अहै अब खून।
रोटी कय जुगाड मुश्किल भा
सब धंधा मंदा चौपट भा
कपड़ा नही शरीर कापिगा।
याद आइगा तेल नून
डगर होइगवा सून।।
काकी खासी से हैरान
कम्बल मा लिपटी है जान।
सुइटर बिना गदेल कापि रहे
रोटी न मिली दुई जून ।
डगर होइगवा सून।।
घुप्प अधेरा कुहिरा बरसै
घर मा सब खाना का तरसै।
कंडी में रहे आलू भून
डगर होइगवा सून।।
सुइटर देह मा नही रहै
पहिने पतली पतलून ।
डगर होइगवा सून।।
सब मिलि देवता का कोसत है
काहे भेज्या जाडा।
खासी की दवाई न मिली तो
पियत रहे गरम काढा।
एहिसा अच्छा रहा जून
डगर होइगवा सून।
विन्ध्य प्रकाश मिश्र विप्र