इश्क ए सखावत।
कभी देखा था सुनहरा ख्वाब हमने भी यूं अपनी नजरों में मोहब्बत का।
बड़ा खुश रहते थे जिन्दगी में साथ था हमारे इश्क ए सखावत का।।
हमें क्या पता था बेवफाई उनकी यूं तन्हाई रातों दिन हमें रुलाएगी।
हम करते भी क्या ना था तजुर्बा ना मिला साथ था हिदायत का।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍