“अल्प मति पुरुषों की जीवन शैली”
“अल्प मति पुरुषों की जीवन शैली”
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अल्प मति पुरुषों की जीवन शैली!
स्वयं को देवता समझने लगे हैं,
मच्छरों सा भिन-भिना कर,
गर्व से चलने लगे हैं,
बेशर्मी की हद है,
ठान अपनों से बैर हैं,
निज अज्ञानता के बस में,
स्वयं से ही दूर हैं,
शिष्टाचार भूलकर ,
अभिमान में चूर हैं,
उलझी जीवन शैली में,
वे कितने मगरुर हैं।।
वर्षा (एक काव्य संग्रह)से/ राकेश चौरसिया