अलसाई हूँ
अलसाई हूँ मन को भाती हूँ , मस्ती लेकर आयी हूँ
चित्रकार ने उठा तूलिका को , छवि अनूठी बनायी है
नख से ले सिर तक सौन्दर्य , रेखा से रेखित होता है ,
नैन में तैरता कौमार्य , बहु कलर शोभित होता है
नटखट है मेरे हाव भाव , देख तुम मुस्करा जाते
इन्द्रधनुषी कलर बिखेरती, लाल चूनर उडा जाते
सावन की हरियाली दिखती , मन का पपिहा शोर करे
पहली बारिश बन बरसे जब , पिपासा तब मेरी बुझे