” ———————- अलसाई सी धूप “
रात दिवस ठंडे लगते, शीतलता चहुँ ओर !
गरम गरम की चाहना, मदमाती सी भोर !!
निखरी निखरी है छटा, निखरा निखरा रूप !
अलसाया सूरज लगे, अलसाई सी धूप !!
चढ़ी कपकपी बदन पर, सरदी है खुशहाल !
मक्के की रोटियां कहीं, सजता हलवा थाल !!
बदन कसरती चाहिये, मौसम है अनुकूल !
खाया पीया अंग लगे, रोग चटायें धूल !!
पढ़ने में चित मन लगे, लगती प्यारी नींद !
आँखों में सपने सजे, वक्त दिखाये सींग !!
बिछी बर्फ की चादर है, काँप रहा बुढ़ापा !
जोशे जवानी मस्त है, मस्ती राग अलापा !!
बृज व्यास