” ——————————————–अर्थ समझ गये गहरे ” !!
गहरे जल में बिम्ब उभरते , अनजाने से गहरे !
दर्पण दिखलाता है हमको , काहे अक्स रूपहरे !!
गहराई से डर लगता है , लहरों से हम खेलें !
समय ने बैठाये रखे हैं , जगह जगह पर पहरे !!
घाट घाट का पानी पीकर , हो गए लोग सयाने !
दुनिया को देते रहते हैं , घाव बड़े औ गहरे !!
आस लगाकर दीपक छोड़ा , बाती देख रही हूं !
तूफानी लहरें टकराये , जोत जोश की फहरे !!
तट पर लहराईं खुशबू है , नहीं मोगरा वश में !
अधरों पर मुस्कान सजी है , भूल गये ककहरे !!
बिन काजर अँखियाँ कजरारी , तुमको कैद किया है !
टिकी हुई नज़रें दुनिया की , सपने सभी चितहरे !!
मौन घाट है मौनी लहरें , मौनी बहती धारा !
जहां मौन से नाता जोड़ा , अर्थ समझ गये गहरे !!
बृज व्यास